भोपाल में एक मूक-बधिर परिवार की कहानी सामने आई है, जहां 11 वर्षीय बेटी आशी अपने माता-पिता की आवाज बन गई है। आशी के माता-पिता अंशुल सोनी और प्रीति सोनी मूक-बधिर हैं और वह उनकी भावनाओं को अपनी आवाज से बयां करती है।
By Prashant Pandey
Publish Date: Mon, 03 Mar 2025 03:30:42 PM (IST)
Updated Date: Mon, 03 Mar 2025 03:38:29 PM (IST)

HighLights
- आशी ने संभाली परिवार की जिम्मेदारी, बन गई माता-पिता की आवाज।
- भोपाल में मूक-बधिर परिवार की कहानी, जहां आशी ने बदल दी जिंदगी।
- आशी की मदद से परिवार ने पाया आत्मविश्वास, जीवन में मिली नई दिशा।
नवदुनिया प्रतिनिधि, भोपाल(World Hearing Day 2025)। लाडो ने जब सोनी परिवार में जन्म लिया तो माता-पिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसकी किलकारी सुनकर वो प्रफुल्लित तो होते थे, लेकिन मूक-बधिर होने के कारण अपनी भावनाएं आवाज के माध्यम से व्यक्त नहीं कर सकते थे।
मासूम ने जब पहली बार तुतलाते हुए बोलना शुरू किया तो इशारे की भाषा से अपने जज्बात जाहिर करने वाले दंपती के जीवन में आशा की नई किरण दिखी। प्यार से उन्होंने उसका नाम आशी रखा।
माता-पिता के इशारों को आवाज से बयां कर देती हैं
11 वर्ष की हो चुकी आशी अब मम्मी-पापा के इशारों की भाषा को पलक झपकते समझकर उन्हें अपनी आवाज से बयां कर देती है। इग्नू भोपाल में सहायक कार्यकारी अंशुल सोनी और उनकी पत्नी प्रीति मूक-बधिर हैं।
अब उनकी आवाज उनकी बेटी आशाी बनी हैं। उनकी आवाज बनकर परिवार की पूरी जिम्मेदारी भी संभालती है। आशी कहती है कि वे अपने माता-पिता की बातों को इशारों में समझ जाती है और उसे सामने वाले को समझा भी देती है। विश्व श्रवण दिवस पर इनके पूरे परिवार की जानकारी दे रहे हैं। यहां सभी खूब बातें करते हैं, लेकिन बिना किसी शोर के।
उनकी जुबान खामोश रहती है, लेकिन इशारों में जज्बात बयां हो जाते हैं। दरअसल, परिवार के सात सदस्य मूक-बधिर हैं। जो साइन लैंग्वेज में अपनी भावनाएं बयां करते हैं। घर के अंदर तो काम चल जाता है, लेकिन बाहर अपनी बात रखने और दूसरों की बात समझने में काफी दिक्कत होती है।
इनकी दुनिया सबसे अलग कैसे
भोपाल के न्यू मिनाल रेसिडेंसी के तीन मंजिला घर में रहने वाले नौ लोगों में से सात बोल-सुन नहीं सकते। इनके साथ रहने वाली सिर्फ दो बेटियां ही बोल और सुन पाती हैं।
आशी इनकी आवाज बनकर महज 11 साल की उम्र में अधिकांश जिम्मेदारियां संभालती है, क्योंकि स्कूल, कॉलेज, अस्पताल हो या बाजार, कहीं पर भी मूक-बधिरों की भाषा समझने वाले एंटरप्रेटर नहीं मिलते। ऐसे में इशारों के जरिए इनकी बात लोगों को समझाने के लिए आशी मदद करती है।
पैरेंट्स-टीचर्स मीटिंग में बन जाती है एंटरप्रेटर
आशी ने बताया कि माता-पिता के नहीं बोलने से उसे कभी परेशानी नहीं हुई, बल्कि बहुत गर्व महसूस होता है।उसने बताया कि जब वह डेढ़ साल की थी तो उसकी मां इशारों में उससे बात करती थी, धीरे-धीरे उसे समझ आने लगा। उसके बाद माता-पिता को कभी भी डाक्टर के पास जाना हो तो वह साथ जाती है। उसने बताया कि स्कूल में पैरेंट्स-टीचर्स मीटिंग में वह कड़ी बनकर समझाती है।
मूक-बधिर बच्चों को देते हैं निश्शुल्क प्रशिक्षण
अब सोनी दंपती और उनका परिवार एक संस्था स्थापित कर अपने जैसे मूक-बधिर बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा, महिलाओं को स्किल ट्रेनिंग, व्यक्तित्व विकास व कंप्यूटर प्रशिक्षण देते हैं। उन्हें मोबाइल चलाना, रेलवे स्टेशन पर टिकट बनवाना ये सब सिखाते हैं, ताकि मूक-बधिर किसी पर आश्रित न रहें। उनके जीवन में निराशा नहीं, हौसला पैदा हो और वे जीवन में सफल बन सकें।